ब्रह्मर्षि समाज से सम्बंधित ब्लॉग | ब्लॉग लिखने का मेरा मकसद समाज से जुड़े पहलुवों पर शोध करना है, ताकि सही मार्गदर्शन मिले | मेरा इरादा किसी भी धर्म, जाति या व्यक्ति विशेष को ढेस या हानि पहुँचाने का कतई न है | अगर किसी भाई बंधू को मेरे ब्लॉग के लेख से जुड़े हुए सच्चाई से समस्या है, तो मैं इतिहास नहीं बदल सकता, मुझे क्षमा करें | आप से विनती है वर्तमान को सही करने की चेष्टा करें और भविष्य से जोड़कर उज्वल इतिहास का निर्माण करें | आपने अपना बहुमूल्य समय मेरे ब्लॉग को दिया इसके लिए मैं आपका सदा आभारी हूँ | आप अपने विचार कमेन्ट के जरिये व्यक्त करके मेरा मार्गदर्शन कर सकते हैं, मुझे ब्लॉग लेखन में सहायता का अनुभव प्राप्त होगा | पाठकों से अनुरोध है आप लेख का दुरूपयोग न करें | संतोष कुमार (लेखक)

अठारह साल में मात्र २७७ ?

Monday 25 June 2012

जीवन इश्वर का अनमोल तोहफा है, हत्या जघन्य अपराध है

जरा सोचिये हक की लड़ाई लड़ने के सारे मार्ग बंद हो चुके हैं, क्या बन्दूक-तलवार ही जवाब है ? खून की होली से आपको तृप्ति मिल सकती है ! निर्दोष के खून से लिया गया तिलक क्या माथे की शोभा बढ़ाएगी !

अठारह साल में मात्र २७७, उससे ज्यादा तो राज्य में १ घंटे और पुरे देश में १ मिनट में पैदा ले लेते हैं | गोली से व्यक्ति कि मौत होती है पीढ़ी की नहीं, तलवार से कुछ का तो सीना चीरा जा सकता है लेकिन पुरे समाज का नहीं | मैं नहीं कहता कि चुप बैठो नाइंसाफी के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद न करो, प्रतिशोध न लो | लड़ाई हक कि होनी चाहिए हत्यायों कि नहीं | प्रतिशोध अपने हक का लो माँग स्वरुप नरसंहार के रूप में नहीं | लाशों के ढेर जंग में सिर्फ एक तरफ नहीं लगते | प्रतिशोध कि ज्वाला में निर्दोष का खून बहाना कहाँ कि इंसानियत है | इश्वर ने अनमोल तोहफे में हमें जीवन प्रदान कि है, उसमे में भी एक हिस्से कि जवानी, उस जवानी को सलाखों के पीछे बिताकर क्या हासिल होगा | जवानी परिवार, बीवी और बच्चों के साथ बिताने के लिए होती है, बुढ़ापे में परिवार के सहारे कि जरुरत होती है, फांसी के फंदे कि नहीं | दोषियों को सजा देना हमारा काम नहीं अपितु सरकार और प्रशासन उसके लिए गठित है, जिसको बनाने में हमारी भी भागेदारी है | परिवर्तन अटल सत्य है, हमारा हक और भविष्य हमसे कोई नहीं छीन सकता | समय और सरकार बदलती रहती है, कभी तो इन्साफ होगा | भगवान ने हमें अनमोल तोहफा स्वरुप बुद्धि प्रदान कि है उसका इस्तेमाल करो, उस बुद्धि में इतनी गोलियाँ हैं जितनी किसी भी देश के सैन्य भंडार में भी नहीं |

मैं न तो गाँधीवादी विचारधारा वाला हूँ और न ही सुभाष के बताये मार्ग का अनुसरण करता हूँ, थप्पड़ कि गूंज याद रखता हूँ और खून से ली गई आजादी मुझे नहीं चाहिए, मैं भगवान परशुराम भक्त, हिटलर की तरह हुँकार भरने वाला, कर्नल गद्दाफी की अर्थववस्था वाली सोंच रखने वाला, लाल बहादुर शास्त्री की तरह ईमानदार व्यक्ति हूँ और चाणक्य कि तरह संयम रखते हुए समय के इंतज़ार में रहता हूँ | खुद की राह पर चलता हूँ, एक ऐसी राह जिससे मझे मेरी मंजिल मिल जाती है | विषम से विषम परिश्थितियों ने भी मेरे होठ की लाली का रंग फीका न कर पाए, अपितु मझे कुछ नया सिखने को मिला |

परशुराम जी की प्रतिज्ञा और धृढ निश्चय ने मुझे कायल तो किया लेकिन उनके फरसे की चमक मुझे रास नहीं आई | हिटलर के सैन्य कमान की नीति तथा अंतिम साँस तक लड़ने की मर्दानगी ने मुझे प्रेरित तो किया लेकिन पुरे विश्व पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए लाखों की आहुति मुझे हिटलर से नफरत करने पर मजबूर करती है | कर्नल गद्दाफी ने लीबिया को विश्व पटल पर जिस तरह मजबूत बनाया, उसने जो अर्थव्यवस्था का ढांचा बनाया जो रुपरेखा तयार की वह काफी तारीफे काबिल थी लेकिन गदाफी ने लीबिया के जनता के खून पसीने कि कमाई दौलत से अपने अय्याशी कि जो सेज सजाई वह मुझे गदाफी से घृणा करने पर मजबूर करती है | आत्मा भी एक दिन मनुष्य का साथ छोडकर चली जाती है तो बईमानी से कमाया हुआ धन किसके लिए इकठा किया जाए | मेरे मुठ्ठी में जो रेखाएँ इश्वर ने गढ़ी हैं वह रास्ता बनकर कामयाबी कि शिखर पर मुझे एक दिन पहुंचा ही देंगी |

- संतोष कुमार (लेखक)

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Brahmeshwar Mukhiya Ranvir Sena Suprimo Interview

Thursday 21 June 2012

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Ranvir Sena Chief Brahmeshwar Mukhiya Interview

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लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार Laxmanpur Bathe Caste Massacres

Monday 18 June 2012


Laxmanpur Bathe Caste Massacres (Bihar)

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ब्रहमेश्वर मुखिया की हत्या के विरोध में तोड़फोड़ व आगजनी के मामले में पुलिस ने कुछ लोगों को नामजद किया

Saturday 9 June 2012

वीर ब्रहमेश्वर मुखिया की हत्या के खबर सुनकर कई लोग कुछ समय के लिए मानसिक तौर से विछिप्त हो गए थे | मुखिया जी की हत्या के विरोध में बिहार के कुछ जगहों पर, खासकर आरा, बिहटा और पटना शहर में तोड़फोड़ व आगजनी जैसी मामूली घटनाएँ घटीं | तोड़फोड़ व आगजनी करने वाले लोग विद्यार्थी भी हो सकते हैं और नाबालिग भी, कुछ ऐसे भी शरारती तत्व हो सकते हैं जो विरोधी दल की राजनितिक उपज हों, जिनका कोई अपराधिक चरित्र पहले से न हो और मुखिया जी की हत्या का सदमा बर्दास्त नहीं कर पाए हों और गुस्से में ऐसी नासमझी वाली भूल कर बैठे हों या विरोधी दल के नेता के इशारे पर जानबूझकर किया हो | सरकार और प्रशासन की और से मुखिया जी के शवयात्रा में पुलिसिया करवाई में थोड़ी ढील देने के कारण तोड़फोड़ व आगजनी जैसी घटना घटीं | मेरे अनुसार सरकार को ऐसे लोगों को एक बार माफ कर देना चाहिए, जिनका पहले से कोई अपराधिक चरित्र न हो और हत्या के विरोध में गुस्से के कारण अपना आप खो बैठे तथा तोड़फोड़ व आगजनी में शामिल होकर कानून तोड़ने का अपराध भूलवश कर बैठे | वैसे भी कुछ पल के लिए ऐसे मानसिक तौर से विछिप्त हो चुके लोगों पर क़ानूनी करवाई करके अपराधी बनाकर, उनके भविष्य को अँधेरे में डालकर सरकार और प्रशासन को कौन सा अलाउद्दीन का चिराग मिल जायेगा, वैसे भी मुखिया जी के दाह संस्कार के बाद माहौल शांत चल रहा है | जैसा की पहले भी पटना में देखने को मिला है की एक कांड में एक प्रशासनिक महिला एस. पी. को माफ करने की सिफारिस बिहार सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्रारा की गई थी | इस बात पर सरकार और प्रशासन को थोडा विचार करना चाहिए, आगे सरकार और प्रशासन की मर्जी |

- संतोष कुमार (लेखक)

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स्व. वीर ब्रहमेश्वर मुखिया एवं भूमिहार जाति सम्बंधित ब्लॉग

Thursday 7 June 2012

स्व. वीर ब्रहमेश्वर मुखिया अमर रहें

हिंदू धर्म के स्वर्ण जाति से सम्बंधित, प्रतिबंधित 'रणवीर सेना' प्रमुख के नाम से चर्चित और 'अखिल भारतीये राष्ट्रवादी किसान संगठन' के संस्थापक स्व. वीर ब्रहमेश्वर नाथ सिंह उर्फ ब्रहमेश्वर मुखिया उर्फ मुखिया जी के बारे में मैं उनके देहांत के पहले केवल उनका नाम सुन रखा था, उनके बारे में मुझे ज्यादा और कुछ भी पता नहीं था | मुखिया जी के देहांत के बाद टीवी और समाचार पत्रिका में जो देखने और पढ़ने को मिला उससे उनके बारे में और भी ज्यादा जानने की मेरी उत्सुकता बढ़ गई इसलिए उनकी शवयात्रा में शामिल हुआ | उनकी शवयात्रा में शारारती तत्वों द्रारा किये गई तोड़-फोड से मुझे काफी आघात पहुंचा, उन लोगों ने जो तोड़-फोड व आगजनी की थी वह गलत था | मुखिया जी और भूमिहार समाज की छवि को धूमिल करने की पूरी कोशिश की गई थी, हो सकता है वे लोग विरोधी दल की राजनितिक उपज हों | घर आकार मैंने सोंच लिया की मुखिया जी से सम्बंधित मुझे कुछ लिखना चाहिए साथ ही साथ शारारती तत्वों द्रारा की गए उत्पात को देखते हुए मैंने ब्लॉग लिखने का निर्णय लिया | असामाजिक तत्वों द्रारा की गए उपद्रव की वजह से कई लोग मुखिया जी की अंतिम विदाई में शामिल नहीं हो सके नहीं तो कम से कम डेढ़ से दो लाख और भी लोगों के शामिल होने की आशंका जताई जा रही थी | ब्लॉग के माध्यम से प्रिये पाठकों से अनुरोध है आप इस ब्लॉग से अपनी जानकारी को बढ़ा सकते हैं लेकिन ब्लॉग के लेख का दुरूपयोग न करें | कृपया कमेन्ट के जरिये अपने विचार अवश्य प्रकट करें | धन्यवाद |

- संतोष कुमार (लेखक)

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