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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

Sunday 11 November 2012

ब्रह्मर्षि समाज के महान विभूति राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

हिन्दी साहित्य जगत में राष्ट्र स्तर पर स्थान बना चुके रामधारी सिंह दिनकर एक लेखक, सुविख्यात कवि और निबंधकार थे | स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन्हें प्रभावशाली विद्रोही कवि का स्थान मिला और स्वाधीनता के उपरांत राष्ट्रकवि के नाम से जाने जाते रहे | इनका जन्म २३ सितम्बर को बिहार के तत्कालीन जिले मुंगेर वर्तमान जिला बेगुसराय अंतर्गत सिमरिया नामक ग्राम में एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था | इनके पिता रवि सिंह एक सामान्य किसान थे और इनकी माता का नाम मनरूप देवी था | दिनकर जब महज दो वर्ष के थे तो इनके पिता का निधन हो गया | इनकी प्रारंभिक व प्राथमिक शिक्षा अपने ग्राम के पाठशाला में हुई एवं मिडिल स्कुल की शिक्षा इन्होने पास के ही ग्राम बोरो से प्राप्त की | मोकामाघाट से हाईस्कूल की शिक्षा के दौरान ही ये विवाहित होने के साथ एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होने से इन्हें पिता कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ | १९२८ में मैट्रिक की शिक्षा पूरी करने के उपरांत १९२९ में प्राणभंग नामक इनकी प्रथम रचना प्रकाशित हुई | पटना विश्वविद्यालय से १९३२ में इतिहास विषय से बी. ए. आनर्स की डिग्री प्राप्त की |

बी. ए. आनर्स की डिग्री प्राप्त करने के एक वर्ष पश्चात ही एक स्कूल में ये प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्त हुए | इसके बाद १९३४ से १९४७ ई. तक बिहार सरकार में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर आसीन रहे | राष्ट्र के स्वाधीनता प्राप्ति के बाद १९५० से १९५२ ई. के दौरान वह मुजफ्फरपुर कालेज में हिंदी के प्रध्यापक व विभागाध्यक्ष रहे | १९५२ में देश के प्रथम संसद में राज्यसभा के लिए मनोनीत होने के साथ १२ वर्षों  तक संसद सदस्य रहे | १९६४ में भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर नियुक्त किये गए पर १९६५ में त्याग पत्र दे दिया | इसके उपरांत वर्ष १९६५ में ही भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार नियुक्त हुए और १९७१. तक कार्य का संपादन किया |

हिंदी साहित्य में विशेष योगदान के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने १५५९ में इन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया | इसी वर्ष इन्हें पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ | भागलपुर विश्वविद्यालय के तात्कालीन कुलाधिपति व बिहार के राज्यपाल डा. जाकिर हुसैन ने उन्हें डॉक्ट्रेट की मानध उपाधि से सम्मानित किया | १९६८ में राजस्थान विद्यापीठ ने उन्हें साहित्य - चूड़ामणि से अलंकृत किया | १९७२ में महाकाव्य 'उर्वशी' के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया |

रामधारी सिंह दिनकरप्रमुख कृतियाँ: ०१. प्राणभंग (१९२९) ०२. रसवंती (१९३९) ०३. द्वन्दगीत (१९४०) ०४. कुरुक्षेत्र (१९४६) ०५. बापू (१९४७) ०६. इतिहास के आंसू (१९५१) ०७. नीम के पत्ते (१९५४) ०८. उर्वशी (१९६१) ०९. परशुराम की प्रतिज्ञा (१९६३) १०. हे राम (१९६६) ११. दिनकर की डायरी (१९६६) |

रामधारी सिंह दिनकरकी प्रमुख कृति कुरुक्षेत्र की एक पंक्ति - " क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो " |

२४ अप्रैल १९७४ मद्रास,  तमिलनाडु में इनका निधन हुआ, इसके साथ ही भारत वर्ष ने एक महान विभूति को खो दिया | जे. पी. आन्दोलन के वक्त राष्ट्रकवि रामधारी दिनकर के बोल सिहासन खाली करो कि जनता आती है “, आज भी लोगों के जुबान पर सुनने को मिलते हैं | राष्ट्रकवि दिनकरके समृति में भारत सरकार द्वारा वर्ष १९९९ में डाक टिकट जारी किया गया | ब्रह्मर्षि समाज के महान विभूति आपको समाज की ओर से शत शत नमन |

- संतोष कुमार (लेखक)

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भीष्म पितामह “ कैलाशपति मिश्र “

Sunday 4 November 2012

ब्रह्मर्षि स्तंभ भीष्म पितामहकैलाशपति मिश्र “

बिहार – झारखण्ड भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक एवं बिहार के जनसंघ की आधारशिला रखने वाले, भाजपा के भीष्म पितामह के नाम से विख्यात, ब्रह्मर्षि स्तंभ श्री कैलाशपति मिश्र का निधन शनिवार ३ नवंबर को दोपहर के एक बजे, पटना में हो गया | वे ८६ वर्ष के थे, इनका जन्म ५ अक्टूबर १९२६ को भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ | इनके पिता का नाम पंडित हजारी मिश्र था और वे बक्सर जिला के गाँव “ दुधारचक ” के रहने वाले थे | १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में इनकी सक्रिय भागीदारी रही और छात्र जीवन में ही इन्हें जेल जाना पड़ा | आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा लेने वाले त्यागी महापुरुष एवं समाजसेवी कैलाशपति जी, सन १९४५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने के साथ अपने अटल संकल्प को बखूबी निभाते हुए मरते दम तक संघ परिवार की सेवा की | भाजपा के इस महाप्रचाकर को १९५९ में पहली बार बिहार प्रदेश के संगठन मंत्री के तौर पर चुना गया | १९७७ के चुनाव के दौरान, पटना जिले के विक्रम विधानसभा क्षेत्र सीट पर अपनी जीत को दर्ज कराते हुए पहली बार विधायक बने और जनता पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की सरकार में वित्त मंत्री के पद से इन्हें नवाजा गया | संघ, बिहार के अपने इस जौहरी को बखूबी जानती थी, १९८० में इन्हें पहली बार बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद से मनोनीत किया गया | १९८४ से लेकर १९९० के दशक तक राज्यसभा सदस्य रहे | कालांतर में वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय मंत्री के साथ पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक बनाये गए | राष्ट्रीय मंत्री और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर आसीन रहते हुए वे कई राज्यों के संगठन मंत्री के रूप में भी कार्यरथ रहे | इन्हें गुजरात के साथ - साथ राजस्थान के राज्यपाल बनने का भी गौरव प्राप्त हुआ |

इनकी लिखी पुस्तकें १) पथ के संस्मरण (आत्मकथा) २) चेतना के स्वर (कविता संग्रह)

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रन्तिकारी, भारतीय जनता पार्टी के रत्न, ब्रह्मर्षि कुलभुषण कैलाशपति मिश्र जी आज हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनकी  विचारधाराएं सदैव हमारा मार्ग दर्शन करते रहेंगे | 

- संतोष कुमार (लेखक)

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