ब्रह्मर्षि समाज से सम्बंधित ब्लॉग | ब्लॉग लिखने का मेरा मकसद समाज से जुड़े पहलुवों पर शोध करना है, ताकि सही मार्गदर्शन मिले | मेरा इरादा किसी भी धर्म, जाति या व्यक्ति विशेष को ढेस या हानि पहुँचाने का कतई न है | अगर किसी भाई बंधू को मेरे ब्लॉग के लेख से जुड़े हुए सच्चाई से समस्या है, तो मैं इतिहास नहीं बदल सकता, मुझे क्षमा करें | आप से विनती है वर्तमान को सही करने की चेष्टा करें और भविष्य से जोड़कर उज्वल इतिहास का निर्माण करें | आपने अपना बहुमूल्य समय मेरे ब्लॉग को दिया इसके लिए मैं आपका सदा आभारी हूँ | आप अपने विचार कमेन्ट के जरिये व्यक्त करके मेरा मार्गदर्शन कर सकते हैं, मुझे ब्लॉग लेखन में सहायता का अनुभव प्राप्त होगा | पाठकों से अनुरोध है आप लेख का दुरूपयोग न करें | संतोष कुमार (लेखक)

भूमिहार ब्राह्मण समाज एक परिचय

Sunday 25 August 2013

भूमिहार ब्राह्मण समाज को लेकर सोसल मिडिया, पत्रिका और पुस्तक में कई जगह लोगों ने उटपटांग लिखा है | इस सम्बन्ध में सच्चाई खुल कर सामने आनी चाहिए इसलिए भूमिहार ब्राह्मण समाज परिचय के समबन्ध में आप सभी को समर्पित मेरा यह लेख -

सारस्वता: कान्यकुब्जा उत्कला गौड़ मैथिला: |
पंचगौड़ा: समाख्याता विन्ध्स्योत्तर वासिन: ।।
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रका: ।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा: विन्ध्यदक्षिणे ।।

(श्लोक: स्कन्द पूराण, कान्यकुब्ज वंशावली )

पञ्चगौड़ और पञ्चद्रविड़ ब्राह्मणों के अंतर्गत त्रिकर्मी अयाचक ब्राह्मणों का वह दल जो भगवान् परशुराम में अपनी संतति ढूँढते हैं साथ ही पेशा के तौर पर कृषि और शासन प्रमुख रहा, उन्हें भारत वर्ष के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में अलग अलग नामों से जाना गया है | जैसे - १. भूमिहार (बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश) २. त्यागी (उत्तर प्रदेश) ३. मोह्याल (पंजाब) ४. अनावील (गुजरात) ५. चितपावन (महाराष्ट्र) ६. नियोगी (आंध्र प्रदेश) ७. नम्बुद्दरी (केरल) |

भूमिहार ब्राह्मण समाज: पञ्चगौड़ के अंतर्गत सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल तथा पञ्चद्रविड़ से महाराष्ट्र और द्रविड़ के त्रिकर्मी अयाचक ब्राह्मणों का एक दलीय समूह है, जो भगवान् परशुराम में अपनी संतति ढूँढते हैं साथ ही पेशा के तौर पर कृषि और शासन प्रमुख है | भूमिहार समाज पुरोहिती से भी जुड़े रहे हैं जैसे देश के प्रमुख मंदिरों में – १) गया विष्णुपद मंदिर २) देव सूर्य मंदिर .....इत्यादि |

सरयूपारी सनाड्यश्चं भूमिहारो जिझौतिया |
प्राकृताश्चय इति पञ्च भेदा स्तस्य प्रकृतिया: ||

भूमिहार ब्राह्मण समाज के अंतर्गत सारस्वत (पंजाब) से पराशर गोत्र, महाराष्ट्र से कौण्डिन्य तथा विष्णुवृद्धि गोत्र, द्रविड़ से हारीत गोत्र तथा कान्यकुब्ज (कनौज प्रदेश), गौड़ प्रदेश (बिहार, झारखण्ड, बंगाल), मैथिल प्रदेश (मिथिला), जिझौतिया (बुंदेलखंड) से भूमिहार ब्राह्मणों के शेष सभी गोत्र आते हैं |

पहले भूमिहार समाज को केवल ब्राह्मण ही कह कर पुकारा जाता था | लेकिन जब ब्राह्मणों के छोटे छोटे दल बनने लगे तब भगवान् परशुराम में अपनी संतति ढूँढने वाले त्रिकर्मी आयचक ब्राह्मण दल.... मगध के बाभन, मिथिला के पश्चिम ब्राह्मण, उत्तर प्रदेश के जमींदार ब्राह्मण को लेकर सन 1885 ई० में एक सभा बनारस में की गई | उत्तर प्रदेश के काशी नरेश महाराजा इश्वरी प्रसाद सिंह, बिहार मगध के बाभन का नेतृत्व कर रहे कालीचरण सिंह जी के साथ मिथिला के पश्चिमा ब्राह्मणों के सौजन्य से कि गयी की गई सभा के विचार विमर्श के उपरान्त इस त्रिकर्मी आयचक ब्राह्मण समाज को एक नये नाम " भूमिहार ब्राह्मण " से संबोधन करना शुरू किया गया |

भूमिहार ब्राह्मण अर्थात: भगवान् परशुराम में अपनी संतति ढूँढने वाले मगध के बाभन, मिथिला के पश्चिम ब्राह्मण, उत्तर प्रदेश के जमींदार ब्राह्मण, सारस्वत (पंजाब) से पराशर गोत्र, महाराष्ट्र से कौण्डिन्य तथा विष्णुवृद्धि गोत्र, द्रविड़ से हारीत गोत्र के त्रिकर्मी अयाचक ब्राह्मणों का दल |

नोट: काफी बार पढने सुनने को मिलता आया है “ Bhumihar Is Not A Caste, It’s A Culture “. परन्तु मेरा मत थोड़ा भिन्न है | शाश्त्रों के अनुसार कर्म से ही जाति का बोध होता आया है, भूमिहार जाति है संस्कृति नहीं | अगर संस्कृति है तो उन सभी जातियों को क्या कहेंगे जिनका बोध कर्म के अनुसार जाना जाता है ?

– संतोष कुमार

0 comments:

Post a Comment

न्यूज: समाचार पत्र, मैगजीन, टेलीवीजन और वेबसाइट से संगृहीत

Copyright © 2012 संतोष कुमार http://brahmeshwarmukhiya.blogspot.com

  © Blogger template On The Road by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP