समाज उन तमाम जयचंदों से बचने की है आवश्यकता -
Monday, 28 October 2013
सफेदपोशी का चादर ओढ़े उन तमाम जयचंदों से बचने की आवश्यकता है जिनकी सहभागिता समाज को आहात करती आई है -
महान हैं आप........ शक की गुंजाईस नाम मात्र शेष..... निसंदेह... नि: संकोच महान हैं आप........ महान बनने की होड़ में शायद आप ..... उन व्यंगात्मक फब्तियों को कबका अपने साथ ले चल पड़े.... इस पर तो तनिक भी ध्यान न दिया होगा आपने ...........
.......... पृथ्वीराज जंग हारा न होता...... इंद्रप्रस्थ की धरती हुई न होती शर्मिंदा........... जो जयचंद का साथ ले गोरी...... तमाम कोशिश पर कोशिश जारी न रखा होता.....
गोरी कैसे करता हिमाकत...........................
जब जयचंद को लिया होता निशाने पर...............
एकता का करके शंखनाद ....................................
जब स्वयं ही बन बैठे जयचंद....................................
अब पृथ्वीराज की भूमिका क्या ख़ाक निभाओगे..................
कविता - संतोष कुमार
महान हैं आप........ शक की गुंजाईस नाम मात्र शेष..... निसंदेह... नि: संकोच महान हैं आप........ महान बनने की होड़ में शायद आप ..... उन व्यंगात्मक फब्तियों को कबका अपने साथ ले चल पड़े.... इस पर तो तनिक भी ध्यान न दिया होगा आपने ...........
.......... पृथ्वीराज जंग हारा न होता...... इंद्रप्रस्थ की धरती हुई न होती शर्मिंदा........... जो जयचंद का साथ ले गोरी...... तमाम कोशिश पर कोशिश जारी न रखा होता.....
गोरी कैसे करता हिमाकत...........................
जब जयचंद को लिया होता निशाने पर...............
एकता का करके शंखनाद ....................................
जब स्वयं ही बन बैठे जयचंद....................................
अब पृथ्वीराज की भूमिका क्या ख़ाक निभाओगे..................
कविता - संतोष कुमार
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