ब्रह्मर्षि समाज से सम्बंधित ब्लॉग | ब्लॉग लिखने का मेरा मकसद समाज से जुड़े पहलुवों पर शोध करना है, ताकि सही मार्गदर्शन मिले | मेरा इरादा किसी भी धर्म, जाति या व्यक्ति विशेष को ढेस या हानि पहुँचाने का कतई न है | अगर किसी भाई बंधू को मेरे ब्लॉग के लेख से जुड़े हुए सच्चाई से समस्या है, तो मैं इतिहास नहीं बदल सकता, मुझे क्षमा करें | आप से विनती है वर्तमान को सही करने की चेष्टा करें और भविष्य से जोड़कर उज्वल इतिहास का निर्माण करें | आपने अपना बहुमूल्य समय मेरे ब्लॉग को दिया इसके लिए मैं आपका सदा आभारी हूँ | आप अपने विचार कमेन्ट के जरिये व्यक्त करके मेरा मार्गदर्शन कर सकते हैं, मुझे ब्लॉग लेखन में सहायता का अनुभव प्राप्त होगा | पाठकों से अनुरोध है आप लेख का दुरूपयोग न करें | संतोष कुमार (लेखक)

Chandra Shekhar Azad ( Indian Freedom Fighter ) - शहीद चंद्रशेखर आजाद

Monday 30 July 2012

शहीद चंद्रशेखर आजाद - Indian Freedom Fighter Chandra Shekhar Azad

भारत के आजादी से जुड़े स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी शहीद स्व. श्री चंद्रशेखर आजाद जुझौतिया ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे | उनका जन्म 23 July 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भावरा गाँव में पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर हुआ था | उनका शहादत 27 February 1931 को उत्तर प्रदेश के इलाहबाद शहर में हुआ था |

नोट: पूरी कहानी अभी लेख में है, शोध की वजह से पूरा लेख अभी पोस्ट करने में असमर्थ हूँ | जल्द ही पूरा लेख आपलोगों के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जायेगा | धन्यवाद |

- संतोष कुमार (लेखक)

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स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा रचित पुस्तकें - Books Written By Swami Sahajanand Saraswati

Sunday 29 July 2012

स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा रचित पुस्तकें :

१. ब्राह्मण समाज की स्थिति - १९१६
२. ब्रह्मर्षि वंश विस्तर – १९१६
३. झूठ भय और मिथ्या अभिमान – १९१६
४. कर्म कलाप – १९२६
५. गया के किसानों की करुना कहानी – १९३३
६. भूमि व्यवस्था कैसे हो – १९३५
७. The Other Side & The Shield - १९३८
८. Rent Reduction in Bihar: How it Works - १९३९
९. मेरा जीवन संघर्ष ( आत्मकथा ) – १९४०
१०. किसान कैसे लड़ते हैं – १९४०
११. किसान क्या करें – १९४०
१२. किसान सभा के संस्मरण – १९४०
१३. झारखण्ड के किसान – १९४१
१४. खेत मजदूर - १९४१
१५. क्रांति और संयुक्त मोर्चा – १९४१
१६. गीता ह्रदय ( धार्मिक ) – १९४२
१७. जमींदारी का खात्मा हो – १९४६
१८. किसानों को फंसाने की तैयारी – १९४६
१९. अब क्या हो – १९४७
२०. महारुद्र का महातांडव – १९४८
२१. किसानों के दवे और कार्यक्रम का खरीता – १९४९

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Coal Mafia B.P. Sinha - काले हीरे का बादशाह कोल माफिया बीपी सिन्हा (भूमिहार)

Friday 27 July 2012

कोल माफिया बीपी सिन्हा, काले हीरे का बादशाह (Coal Mafia B.P. Sinha)

जब हम काले हीरे की बात करते हैं तो हमें तत्कालीन बिहार राज्य के कुछ प्रमुख शहर झरिया, धनबाद, वासेपुर (वर्तमान झारखण्ड) की और हमारा ध्यान आकर्षित होता है | ये शहर जहाँ कभी छोटे - छोटे गाँव और बस्ती हुआ करते थे, आज बड़ी - बड़ी इमारतें देखने को मिलती है और फर्राटे से दौड़तीं गाडियां, वहाँ कभी घोड़ों की टाप के साथ - साथ बैलगाड़ी के पहियों के स्वर सुनाई पड़ते थे |

एक ओजस्वी नौजवान की सफर 1957-1958 के मध्य से शुरू होती है, बिहार के पटना जिले स्थित बाढ़ अनुमंडल का एक युवक नौकरी की तलाश में भटकते हुए कोल नगरी धनबाद आ पहुंचाता है | उस युवक की नजर काले हीरे की खान पर जा टिकती है | वह कोयले की खानों से अपने नए जीवन की शुरुवात करता है | कोयलांचल की जीवन शैली में वह इतना रम जाता है की मजदूर संघ में जगह मिलने के कुछ समय पश्चात ही वह मजदूर संघ का मुख्य नेता बन जाता है | लगता था जैसे काला हीरा स्वयं अपना जोहरी तलाश रहा था वर्षों से | कालांतर में वह पूरे कोल नगरी का बेताज बादशाह बन जाता है वह जोहरी और यहीं से शुरू होता है कोयलांचल के वर्चस्व और खुनी जंग की कहानी “ गैंग्स ऑफ वासेपुर “ |

भूमिहार ब्राह्मण परिवार में जन्मे जिस काले हीरे के पारखी की हम बात कर रहे हैं यह कोई और नहीं, यह कोल माफिया बिरेन्द्र प्रताप सिन्हा (बीपी सिन्हा) जी थे | आपने अमरीका के व्हाइट हॉउस का नाम तो सुना ही होगा ठीक वैसा ही कुछ सिन्हा जी का आवास व्हाईट हाउस के रूप में मशहूर हुआ था उन दिनों , जो आज भी उनकी याद को ताजा करता है गुजरते हुए राहगीरों को |

पहले कोयलांचल का इलाका ‘वासेपुर’ किसी ज़माने में मुस्लिम बाहुबल गाँव हुआ करता था, छोटी - छोटी कई बस्तियां भी थीं, वहाँ किसानों द्वारा खेती हुआ करती थी | लेकिन जब अंग्रेजों को कोयला भंडार का पता चला तब उन्होंने वहाँ कोयला निकलने के लिए कारखाना का निर्माण किया और धीरे धीरे खेती बंद होती चली गई और वह इलाका काले हीरे के भंडार के नाम से जाना गया जिसे हम आज कोल नगरी के नाम से जानते हैं | कोयला अंग्रेजों के ज़माने में कारखाना और रेल चलाने का मुख्य स्रोत था, उनके द्वारा वास्तव में कोल नगरी बसाने का मुख्य वजह यह ही था | 1947 में जब अंग्रेज देश छोड़कर चले जाते हैं तब कोयले की ज्यादातर खदानें निजी संस्थाओं के हाथों में थी | उस वक्त अधिकांश खदान मालिक राजस्थान और गुजरात से जुड़े थे जबकि माइनर्स तत्कालीन उत्तर बिहार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के होते थे | कहते हैं कोयला श्रमिकों के लिए मात्र काला पत्थर ही था जबकि खदान मालिकों एवं माफियाओं के लिए काले हीरे से कम न था | वहाँ खदान मालिकों की मिलकियत कोयला खदानों पर चलती थी | खदान मालिक खदान को चलाने के लिए गुंडों को दाना - पानी दिया करते थे | इस धंधे में वर्चस्व को लेकर छोटी मोटी घटनाएं अक्सर हुआ करती थीं, लेकिन माफियाओं का दौर साठ के दशक में शुरू होता है | इसी दौरान बीपी सिन्हा मजदूर आंदोलन में कूद गए और ट्रेड यूनियन के सबसे बड़े मजदुर नेता के रूप में उभर कर सामने आए | देखते ही देखते 10 साल के अंदर बीपी सिन्हा की पकड़ पूरे कोयले की नगरी पर हो जाती है | आंकड़ों के मुताबिक धनबाद में कोयले के कारोबार पर कब्जे को लेकर 1967 तक छिड़ी जंग में दर्जनों दबंग कारोबारियों और नेताओं की बलि दी जा चुकी थी |

कोल माइनिंग पर वर्चस्व के लिए मजदूर संघ का मजबूत होना बहुत ही आवश्यक था, बीपी सिन्हा इस बात को बखूबी जानते थे | जब 17 अक्टूबर 1971 को कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाता है तब राष्ट्रीयकरण होते ही बीपी सिन्हा का कोल नगरी पर पकड़ और अधिक मजबूत हो जाता है, पूरे कोल माइनिंग में उनकी तूती बोलने लगती है, उनका अब कोयले की खदानों पर एकछत्र राज्य चलने लगता है | वह कांग्रेस के प्रचारक थे और कोल माइनिंग में भारतीय राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ की तूती बोलती थी | किद्वान्ति है की उनका माफिया राज इतना बड़ा था की एक बार जब प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी अपने रैली के दौरान सभा में देर से आई थीं, इस बात को लेकर बीपी सिन्हा बहुत नाराज हुए थे, जिसको लेकर इंदिरा गाँधी को भरी सभा में जनता से क्षमा माँगनी पड़ी थी | उनकी प्रभुता के किस्से में एक अध्याय यह भी जुड़ा है की उन्होंने अपने माली बिंदेश्वरी दुबे’ को मजदूर संघ का नेता तक बना डाला था | वे कांग्रेसी थे और उनका कद इतना बड़ा था की उन दिनों भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनकी वार्तालाप हॉटलाइन पर हुआ करती थी |

इन्ही दिनों बीपी सिन्हा के गैंग में शामिल होता है राजपूत जाति का एक श्रमिक सूरजदेव सिंह, जो की उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का रहने वाला था | कुछ समय पश्चात बीपी सिन्हा से नजदीकियां बढाकर वह मजदूर सूरजदेव सिंह, सिन्हा जी के बॉडीगार्ड के साथ साथ भरोसे की बदौलत दाहिना हाथ तक बन जाता है | कालांतर में सूरजदेव सिंह बीपी सिन्हा का साथ पाकर अंदरूनी तौर पर मजबूत होते चले जाते हैं | तत्कालीन बिहार और उत्तर प्रदेश राजनीति से ग्रसित हो चुकी थी, जतिगत बोलबाला शरू हो चूका था, यह प्रसिद्ध कहावत “ लाठी हमारी तो मिल्कियत भी हमारी ” चरितार्थ हो रही थी | छिटपुट घटनाओं में अब तक दर्जनों लाशें बिछ चुकी थीं, इन लड़ाइयों में तत्कालीन बिहार और उत्तर प्रदेश के बड़े से बड़े क्रिमिनल शामिल थे | इसकी गूंज बिहार और दिल्ली की सत्ता के गलियारों से लेकर पार्लियामेंट तक सुनाई पड़ रहीं थी | ए+बी+सी=डी काफी प्रचलित हो चूका था, इस एब्रीविएशन का अर्थ था आरा + बलिया + छपरा = धनबाद | बीपी सिन्हा को कोयलांचल में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, पर वह हताश नहीं हुए थे, अपने शागिर्दों के दम पर उनकी रियासत कायम थी |

केंद्र की सत्ता से बेदखल हुई इंदिरा गांधी के विरोधी लहर के दौरान विरोधी बीपी सिन्हा के इस वर्चस्व को तोडऩे के लिए मौके की तलाश में थे | वैसे भी सूरजदेव सिंह बीपी सिन्हा से अलग हटकर काम करने को आतुर था | पूर्व प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के युवा नेता ‘चंद्रशेखर’, जो की वह भी जाति से राजपूत ही थे, अपना पूरा ताकत लगा चुके थे, कहा जाता है सूरजदेव सिंह उनके करीबी मित्र थे | 1977 में सूरजदेव सिंह को जनता पार्टी से टिकट मिली थी और वह उस एरिया से विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बन चुके थे । कहते हैं बीपी सिन्हा से सूरजदेव सिंह की दूरियां बढती चली जा रही थी, फिर भी उनका अपने पुराने शागिर्द सूरजदेव देव सिंह पर जबरदस्त भरोसा कायम था | सूरजदेव सिंह का रात -बिरात बीपी सिन्हा का कथित आवास ‘व्हाइट हॉउस’ पर आना जाना लगा रहता था | फिर अचानक 28 मार्च 1979 की रात अपने ने ही वह करतूत कर डाला जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, व्हाइट हॉउस खून से सराबोर हो चूका था | काले हीरे के सरताज अलविदा हो चुके थे, कहा जाता है दगा देकर उनकी हत्या बहुत ही क्रूर तरीके से की गई थी | हत्या का आरोप उन्हीं लोगों पर लगा जो उनके अपने शागिर्द थे | कोयलांचल के सुप्रीमो कोल माफिया बीपी सिन्हा के मौत के बाद उनके राजनीतिक शिष्य सूर्यदेव सिंह सुर्खियों में आए थे | व्हाइट हॉउस की चमक अब खत्म हो चुकी थी और सूरजदेव सिंह का ‘सिंह मैन्सन’ जगमगाने लगा था | कुछ भी हो भले ही चमक अब खत्म हो चुकी पर ‘व्हासइट हॉउस’ आज भी कोल नगरी के बेताज बादशाह के बुलंदियों की कहानी बयान करती है और कहा जाता है जगमगाते ‘सिंह मैन्सन’ में कई विधवाएँ रहती हैं |

हाल फिलहाल में सिनेमा घरों में अनुराग कश्यप की बहुचर्चित फिल्गैंग्स आफ वासेपुररिलीज हुई, यह सिनेमा धनबाद कोल माफियाओं पर आधारित थी | अनुराग ने अपने फिल्म में जिस वासेपुर को दिखाया है वह यहां के के सच से भले ही मेल नहीं खाता हो, लेकिन गैंगवार वासेपुर और पूरे कोयलांचल की एक हकीकत है | इससे पहले भी 1979 में कोयलांचल पर बॉलीवुड के मशहूर निर्माता - निर्देशक यस चोपरा के बैनर तले एक सुपरहिट फिल्म बन चुकी है " काला पत्थर ", मुख्य किरदार के तौर पर थे, अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा एवं शशि कपूर |

(इतिहास को याद रखना आवश्यक है, समय पर इसकी जरुरत पड़ती है, जो इतिहास को भूलते हैं, चूक उन्ही से होती है और दगा की वजह शिकार बन जाते हैं | कहते हैं इतिहास अपने को दोहराता है | वैसे आपलोग ने इतिहास में राजा जयचंद की कहानी पढ़ी ही होगी )

- संतोष कुमार (लेखक)

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बिटिश साम्राज्य में भूमिहार ब्राह्मणों को मिली प्रमुख उपाधियां

Monday 16 July 2012

सर - महाराजा प्रताप शाही - गोपालगंज (बिहार)
सर - महाराजा हरेन्द्र किशोर सिंह - बेतिया (बिहार)
सर - महाराजा प्रभुनाराय्ण सिंह - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
सर - महाराजा योगेन्द्र नरायण राय - मुर्शिदावाद (बंगाल)
सर - डा० गणेश दत्त सिंह - नालंदा (बिहार)
सर - डा० चन्द्रेश्वर प्रसाद नारायण सिंह - मुज़फ्फरपुर (बिहार)
सर - आदित्य नारायण सिंह - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
कैप्टन - महाराजा गोपाल शरण - टेकारी स्टेट (बिहार)
दिवान - बहादुर श्री वद्री नारायण सिंह - जैतपुर स्टेट (बिहार)
दिवान - बहादुर श्री कामेश्वर सिंह - नरहन स्टेट (बिहार)
राय - बहादुर श्री जगदीश सिंह - बभनगावा स्टेट (झारखण्ड)
राय - बहादुर श्री बच्चू सिंह - मोकामा स्टेट (बिहार)
राय - बहादुर श्री चन्द्रधारी सिंह - धरहरा स्टेट (बिहार)
राय - बहादुर श्री ऎपल सिंह - रानी वीणा स्टेट
राय - बहादुर श्री काशी नाथ सिंह - मलहिया स्टेट
राय - बहादुर श्री भगवती सिंह - आगापुर स्टेट (उत्तर प्रदेश)
राय - बहादुर श्री मेदिनी सिंह - बेगुसराय (बिहार)
राय - बहादुर श्री अवध किशोर सिंह - बेगुसराय (बिहार)
राय - बहादुर श्री महेश्वर सिंह - समस्तीपुर (बिहार)
राय - साहब श्री जगत सिंह - समस्तीपुर (बिहार)
राय - बहादुर श्री वागेश्वर सिंह - गया (बिहार)
राय - बहादुर श्री रामेश्वर सिंह - गया (बिहार)
राय - बहादुर श्री रामनेवाज सिंह - मुज़फ्फरपुर (बिहार)
राय - बहादुर श्री शत्रुध्न शाही - पटना (बिहार)
राय - बहादुर श्री राम शकर सिंह - छ्परा (बिहार)
राय - बहादुर श्री सिधेश्वर सिंह - भागलपुर (बिहार)
राय - साहब श्री भगवत सिंह - वैशाली (बिहार)
राय - बहादुर श्री कुवर कविन्द्र नाथ सिंह - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
राय - बहादुर श्री दीप नरायण राय - गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
राय - बहादुर श्री जगदेव राय - सुहवल
राय - बहादुर श्री महावीर सिंह - वरावगज
राय - बहादुर श्री श्याम नरायण सिंह - दीशनी
राय - बहादुर श्री राम प्रसाद शाही - व्गोरा
राय - साहब श्री महदेव प्रसाद सिंह

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भूमिहार ब्राह्मण जाति के लोगों का बाहुल्य क्षेत्र

Saturday 14 July 2012

भूमिहार ब्राह्मण जाति के लोगों का अधिकांश बाहुल्य क्षेत्र बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश का इलाका देखने को मिलता है |

बिहार के उत्तरी दक्षिणी बिहार के मैदानी इलाकेनवादा, जहानाबाद, औरंगाबाद, अरवल, शेखपुरा, बेगुसाराय, मुजफ्फरपुर, रोहतास, आरा, भभुआ, कैमूर, बक्सर, चम्पारण, पटना, गया, छपरा, भागलपुर, मधुबनी, सीतामढ़ी, मुंगेर, दरभंगा, सिवान, जमुई, कटिहार, वैशाली, लखीसराय, नालंदा, गोपालगंज |

पूर्वी उत्तर प्रदेश - गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, वाराणसी, बलिया, मिर्ज़ापुर, जौनपुर, इलहाबाद, गोरखपुर, देओरिया, महराजगंज, सिद्दार्थ नगर , बस्ती, आदि जनपदों में बहुलता के साथ इनकी आबादी दखने को मिलती है |

- संतोष कुमार (लेखक)

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रणवीर चौधरी से रणवीर सेना तक का सफर

Friday 13 July 2012

सफर उनीसवीं शाताब्दी से शुरू होती है, लगभग २१० वर्ष पुरानी बात है | बिहार के शाहाबाद जिले (वर्तमान भोजपुर जिला) के बेलाउर ग्राम में भूमिहार जाति के निवासी रणवीर चौधरी हुआ करते थे | गांव में राजपूत, भूमिहार, यादव और भी कुछ जाति के लोग रहते थे, लेकिन वर्चस्व राजपूतों कि थी उनकी संख्या अधिक थी, भूमिहार और यादवों के गिने चुने ही घर थे | आरा के नजदीक, जगदीशपुर निवासी महान स्वतंत्रता सेनानी राजा बाबू वीर कुंवर सिंह (पिता बाबू साहबजादा सिंह) भोजपुर जिले से थे, राजपूतों का उस इलाके में दबदबा होने का मुख्य कारण यह भी रहा | किद्वंती है कि रणवीर चौधरी का अपने ही गाँव के राजपूत जाति के लोगों से ठन गई | बात यहाँ तक आ गई कि राजपूतों को बेलाउर छोड़कर भागना पडा और उन्होंने बेलाउर से कुछ फासले पर स्थित मसाढ़, कौंरा आदि गांव में शरण ली | अंततः रणवीर चौधरी ने राजपूतों को बेलाउर गांव से खदेड़कर ही दम लिया और बेलाउर में भूमिहार का वर्चस्व कायम कर दिया | बेलाउरवाशी अपने को अवतार पुरुष रणवीर चौधरी का ही वंशज मानते हैं | बेलाउर में आज भी रणवीर चौधरी कि प्रतिमा देखने को मिलती है |

नब्बे के दशक में जब प्रतिबंधित संगठन भाकपा माले लिबरेशन से जब लोहा लेने कि बात आई तब भूमिहारों ने अवतारी पुरुष रणवीर चौधरी के नाम पर “ रणवीर किसान समिति “ बनाई | वास्तव में रणवीर सेना नाम संगठन भाकपा माले लिबरेशन का दिया हुआ है |

नोट: रणवीर किसान समिति (रणवीर सेना) पर लेख जारी है, बहुत जल्द पोस्ट कर दिया जायेगा |

- संतोष कुमार (लेखक)

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कुछ प्रसिद्ध भूमिहारी कहावतें -

Saturday 7 July 2012

01. मैं उसको नहीं जानता जो भूमिहार नहीं हैं,
लेकिन जो भूमिहार है उनको कौन नहीं जानता ||

02. जिन्दगी तो भूमिहार जिया करते हैं,
दिग्गजों को पछाड कर राज्य किया करते हैं,
कौन रखता है किसी के सर पर ताज,
भूमिहार तो अपना राज तिलक स्वयं अपने रक्त से किया करते हैं,
फूलों की कहानी लिखी बहारों ने,
रात की कहानी लिखी सितारों ने,
भूमिहार नहीं किसी कलम के गुलाम,
क्योंकि भूमिहार की कहानी लिखी बंदूकों और तलवारो ने ||

03. सेना में स्वरों का और जिन्दगी में भूमिहारों का अलग ही मजा है ||

04. लोड करके राईफल, जब जीप पे सवार होते,
बाऩध साफा जब गाबरू तयार होते,
देखती है दुनिया छत पर चढके,
और कहते - " काश हम भी भूमिहार होते " ||

05. यार जा रहा है, दिलदार जा रहा है,
बच के रहना बबुआ, भूमिहार जा रहा है ||

06. लंका में रावण बिहार में बाभन (भूमिहार) ||

07. जिस घाट पर भूमिहार पानी पीते हैं,
वहाँ सियार भी पानी नहीं पीता ||

08. खनक जाए हाथों में उसे तलवार कहते हैं,
निकाल दे जो बालू से तेल उसको भूमिहार कहते हैं ||

09. जहाँ जईसन तहां तईसन,
अईसन नहीं त भूमिहार कईसन ||

10. हर तलवार पर भूमिहार की कहानी है,
तभी तो दुनिया भूमिहारों की दीवानी है |
मिट गए मिटाने वाले,
आग में तपी भूमिहारों की जवानी है ||

11. बिना पंख के उडाये,
बिना लासा के सटाये,
वही भूमिहार कहलाये ||

12. भूमिहार- एक योद्धा
जब राज-सिंहासन हिलने लगते
मचने लगती है एक ही पुकार
जब बंद द्वार खुल जाते थे
तब दरबारी चिल्लाते थे
छोडो सिंहासन चलो भाग
आ रहा है कोई भूमिहार |2|
जब स्वयं तिलक हो जाते थे
र्चस्व बना रहे पुरे जग में
दीप स्वयं प्रज्वलित हो जाएँ
तब समझ लेना मेरे जग वालो
आ रहा है कोई भूमिहार |2|
हाथी के गर्जन को भी डर एक साँप सूंघ ले
शेरों के मन भी डर से भयभीत हो उठें
घोड़ो के अस्तबल से आने लगे शांति की पुकार
तब समझ लेना मेरे जग वालो
आ रहा है कोई भूमिहार |2|

13. बभन-पेंच का चक्र चले जब,
त्राहि-त्राहि कर उठें लोग सब,
त्राण उन्हें मिलता है तब,
जब सब मिल करते गुहार,
समवेत स्वरों में महोच्चार,
जय भूमिहार जय भूमिहार

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