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Coal Mafia B.P. Sinha - काले हीरे का बादशाह कोल माफिया बीपी सिन्हा (भूमिहार)

Friday 27 July 2012

कोल माफिया बीपी सिन्हा, काले हीरे का बादशाह (Coal Mafia B.P. Sinha)

जब हम काले हीरे की बात करते हैं तो हमें तत्कालीन बिहार राज्य के कुछ प्रमुख शहर झरिया, धनबाद, वासेपुर (वर्तमान झारखण्ड) की और हमारा ध्यान आकर्षित होता है | ये शहर जहाँ कभी छोटे - छोटे गाँव और बस्ती हुआ करते थे, आज बड़ी - बड़ी इमारतें देखने को मिलती है और फर्राटे से दौड़तीं गाडियां, वहाँ कभी घोड़ों की टाप के साथ - साथ बैलगाड़ी के पहियों के स्वर सुनाई पड़ते थे |

एक ओजस्वी नौजवान की सफर 1957-1958 के मध्य से शुरू होती है, बिहार के पटना जिले स्थित बाढ़ अनुमंडल का एक युवक नौकरी की तलाश में भटकते हुए कोल नगरी धनबाद आ पहुंचाता है | उस युवक की नजर काले हीरे की खान पर जा टिकती है | वह कोयले की खानों से अपने नए जीवन की शुरुवात करता है | कोयलांचल की जीवन शैली में वह इतना रम जाता है की मजदूर संघ में जगह मिलने के कुछ समय पश्चात ही वह मजदूर संघ का मुख्य नेता बन जाता है | लगता था जैसे काला हीरा स्वयं अपना जोहरी तलाश रहा था वर्षों से | कालांतर में वह पूरे कोल नगरी का बेताज बादशाह बन जाता है वह जोहरी और यहीं से शुरू होता है कोयलांचल के वर्चस्व और खुनी जंग की कहानी “ गैंग्स ऑफ वासेपुर “ |

भूमिहार ब्राह्मण परिवार में जन्मे जिस काले हीरे के पारखी की हम बात कर रहे हैं यह कोई और नहीं, यह कोल माफिया बिरेन्द्र प्रताप सिन्हा (बीपी सिन्हा) जी थे | आपने अमरीका के व्हाइट हॉउस का नाम तो सुना ही होगा ठीक वैसा ही कुछ सिन्हा जी का आवास व्हाईट हाउस के रूप में मशहूर हुआ था उन दिनों , जो आज भी उनकी याद को ताजा करता है गुजरते हुए राहगीरों को |

पहले कोयलांचल का इलाका ‘वासेपुर’ किसी ज़माने में मुस्लिम बाहुबल गाँव हुआ करता था, छोटी - छोटी कई बस्तियां भी थीं, वहाँ किसानों द्वारा खेती हुआ करती थी | लेकिन जब अंग्रेजों को कोयला भंडार का पता चला तब उन्होंने वहाँ कोयला निकलने के लिए कारखाना का निर्माण किया और धीरे धीरे खेती बंद होती चली गई और वह इलाका काले हीरे के भंडार के नाम से जाना गया जिसे हम आज कोल नगरी के नाम से जानते हैं | कोयला अंग्रेजों के ज़माने में कारखाना और रेल चलाने का मुख्य स्रोत था, उनके द्वारा वास्तव में कोल नगरी बसाने का मुख्य वजह यह ही था | 1947 में जब अंग्रेज देश छोड़कर चले जाते हैं तब कोयले की ज्यादातर खदानें निजी संस्थाओं के हाथों में थी | उस वक्त अधिकांश खदान मालिक राजस्थान और गुजरात से जुड़े थे जबकि माइनर्स तत्कालीन उत्तर बिहार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के होते थे | कहते हैं कोयला श्रमिकों के लिए मात्र काला पत्थर ही था जबकि खदान मालिकों एवं माफियाओं के लिए काले हीरे से कम न था | वहाँ खदान मालिकों की मिलकियत कोयला खदानों पर चलती थी | खदान मालिक खदान को चलाने के लिए गुंडों को दाना - पानी दिया करते थे | इस धंधे में वर्चस्व को लेकर छोटी मोटी घटनाएं अक्सर हुआ करती थीं, लेकिन माफियाओं का दौर साठ के दशक में शुरू होता है | इसी दौरान बीपी सिन्हा मजदूर आंदोलन में कूद गए और ट्रेड यूनियन के सबसे बड़े मजदुर नेता के रूप में उभर कर सामने आए | देखते ही देखते 10 साल के अंदर बीपी सिन्हा की पकड़ पूरे कोयले की नगरी पर हो जाती है | आंकड़ों के मुताबिक धनबाद में कोयले के कारोबार पर कब्जे को लेकर 1967 तक छिड़ी जंग में दर्जनों दबंग कारोबारियों और नेताओं की बलि दी जा चुकी थी |

कोल माइनिंग पर वर्चस्व के लिए मजदूर संघ का मजबूत होना बहुत ही आवश्यक था, बीपी सिन्हा इस बात को बखूबी जानते थे | जब 17 अक्टूबर 1971 को कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाता है तब राष्ट्रीयकरण होते ही बीपी सिन्हा का कोल नगरी पर पकड़ और अधिक मजबूत हो जाता है, पूरे कोल माइनिंग में उनकी तूती बोलने लगती है, उनका अब कोयले की खदानों पर एकछत्र राज्य चलने लगता है | वह कांग्रेस के प्रचारक थे और कोल माइनिंग में भारतीय राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ की तूती बोलती थी | किद्वान्ति है की उनका माफिया राज इतना बड़ा था की एक बार जब प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी अपने रैली के दौरान सभा में देर से आई थीं, इस बात को लेकर बीपी सिन्हा बहुत नाराज हुए थे, जिसको लेकर इंदिरा गाँधी को भरी सभा में जनता से क्षमा माँगनी पड़ी थी | उनकी प्रभुता के किस्से में एक अध्याय यह भी जुड़ा है की उन्होंने अपने माली बिंदेश्वरी दुबे’ को मजदूर संघ का नेता तक बना डाला था | वे कांग्रेसी थे और उनका कद इतना बड़ा था की उन दिनों भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनकी वार्तालाप हॉटलाइन पर हुआ करती थी |

इन्ही दिनों बीपी सिन्हा के गैंग में शामिल होता है राजपूत जाति का एक श्रमिक सूरजदेव सिंह, जो की उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का रहने वाला था | कुछ समय पश्चात बीपी सिन्हा से नजदीकियां बढाकर वह मजदूर सूरजदेव सिंह, सिन्हा जी के बॉडीगार्ड के साथ साथ भरोसे की बदौलत दाहिना हाथ तक बन जाता है | कालांतर में सूरजदेव सिंह बीपी सिन्हा का साथ पाकर अंदरूनी तौर पर मजबूत होते चले जाते हैं | तत्कालीन बिहार और उत्तर प्रदेश राजनीति से ग्रसित हो चुकी थी, जतिगत बोलबाला शरू हो चूका था, यह प्रसिद्ध कहावत “ लाठी हमारी तो मिल्कियत भी हमारी ” चरितार्थ हो रही थी | छिटपुट घटनाओं में अब तक दर्जनों लाशें बिछ चुकी थीं, इन लड़ाइयों में तत्कालीन बिहार और उत्तर प्रदेश के बड़े से बड़े क्रिमिनल शामिल थे | इसकी गूंज बिहार और दिल्ली की सत्ता के गलियारों से लेकर पार्लियामेंट तक सुनाई पड़ रहीं थी | ए+बी+सी=डी काफी प्रचलित हो चूका था, इस एब्रीविएशन का अर्थ था आरा + बलिया + छपरा = धनबाद | बीपी सिन्हा को कोयलांचल में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, पर वह हताश नहीं हुए थे, अपने शागिर्दों के दम पर उनकी रियासत कायम थी |

केंद्र की सत्ता से बेदखल हुई इंदिरा गांधी के विरोधी लहर के दौरान विरोधी बीपी सिन्हा के इस वर्चस्व को तोडऩे के लिए मौके की तलाश में थे | वैसे भी सूरजदेव सिंह बीपी सिन्हा से अलग हटकर काम करने को आतुर था | पूर्व प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के युवा नेता ‘चंद्रशेखर’, जो की वह भी जाति से राजपूत ही थे, अपना पूरा ताकत लगा चुके थे, कहा जाता है सूरजदेव सिंह उनके करीबी मित्र थे | 1977 में सूरजदेव सिंह को जनता पार्टी से टिकट मिली थी और वह उस एरिया से विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बन चुके थे । कहते हैं बीपी सिन्हा से सूरजदेव सिंह की दूरियां बढती चली जा रही थी, फिर भी उनका अपने पुराने शागिर्द सूरजदेव देव सिंह पर जबरदस्त भरोसा कायम था | सूरजदेव सिंह का रात -बिरात बीपी सिन्हा का कथित आवास ‘व्हाइट हॉउस’ पर आना जाना लगा रहता था | फिर अचानक 28 मार्च 1979 की रात अपने ने ही वह करतूत कर डाला जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, व्हाइट हॉउस खून से सराबोर हो चूका था | काले हीरे के सरताज अलविदा हो चुके थे, कहा जाता है दगा देकर उनकी हत्या बहुत ही क्रूर तरीके से की गई थी | हत्या का आरोप उन्हीं लोगों पर लगा जो उनके अपने शागिर्द थे | कोयलांचल के सुप्रीमो कोल माफिया बीपी सिन्हा के मौत के बाद उनके राजनीतिक शिष्य सूर्यदेव सिंह सुर्खियों में आए थे | व्हाइट हॉउस की चमक अब खत्म हो चुकी थी और सूरजदेव सिंह का ‘सिंह मैन्सन’ जगमगाने लगा था | कुछ भी हो भले ही चमक अब खत्म हो चुकी पर ‘व्हासइट हॉउस’ आज भी कोल नगरी के बेताज बादशाह के बुलंदियों की कहानी बयान करती है और कहा जाता है जगमगाते ‘सिंह मैन्सन’ में कई विधवाएँ रहती हैं |

हाल फिलहाल में सिनेमा घरों में अनुराग कश्यप की बहुचर्चित फिल्गैंग्स आफ वासेपुररिलीज हुई, यह सिनेमा धनबाद कोल माफियाओं पर आधारित थी | अनुराग ने अपने फिल्म में जिस वासेपुर को दिखाया है वह यहां के के सच से भले ही मेल नहीं खाता हो, लेकिन गैंगवार वासेपुर और पूरे कोयलांचल की एक हकीकत है | इससे पहले भी 1979 में कोयलांचल पर बॉलीवुड के मशहूर निर्माता - निर्देशक यस चोपरा के बैनर तले एक सुपरहिट फिल्म बन चुकी है " काला पत्थर ", मुख्य किरदार के तौर पर थे, अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा एवं शशि कपूर |

(इतिहास को याद रखना आवश्यक है, समय पर इसकी जरुरत पड़ती है, जो इतिहास को भूलते हैं, चूक उन्ही से होती है और दगा की वजह शिकार बन जाते हैं | कहते हैं इतिहास अपने को दोहराता है | वैसे आपलोग ने इतिहास में राजा जयचंद की कहानी पढ़ी ही होगी )

- संतोष कुमार (लेखक)

3 comments:

Bibhaw 28 July 2012 at 11:44  

विस्तृत लेख के लिए धन्यवाद

Amitesh Anand 28 July 2012 at 14:06  

shi khe hai rajputo ka itihaas yahi hai...

Unknown 14 August 2012 at 00:27  

संतोष भाई, बी पी सिन्हा साहब अपने समय के सबसे मजबूत भूमिहार नेता थे. आज की पीढ़ी शायद भूल गयी है और येही कारण है की भूमिहार समाज आज धनबाद में जिल्लत की ज़िन्दगी बिता रहा है. आज कई भूमिहार युवक अपना स्वाभिमान भुला कर सिंह मेंसन की दरबारी कर रहे है.

समय आ गया है जब भूमिहार फिर धनबाद में जागे और खोय हुए स्वाभिमान के लिए हथियार उठाये. बी पी सिन्हा के परिवार और व्हाइट हॉउस को भूमिहार समाज का नेतृत्वा करने के लिए आगे आना चाहिए.

ब्रह्मदेव शर्मा

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