अठारह साल में मात्र २७७ ?
Monday, 25 June 2012
जरा सोचिये हक की लड़ाई लड़ने के सारे मार्ग बंद हो चुके हैं, क्या बन्दूक-तलवार ही जवाब है ? खून की होली से आपको तृप्ति मिल सकती है ! निर्दोष के खून से लिया गया तिलक क्या माथे की शोभा बढ़ाएगी !
अठारह साल में मात्र २७७, उससे ज्यादा तो राज्य में १ घंटे और पुरे देश में १ मिनट में पैदा ले लेते हैं | गोली से व्यक्ति कि मौत होती है पीढ़ी की नहीं, तलवार से कुछ का तो सीना चीरा जा सकता है लेकिन पुरे समाज का नहीं | मैं नहीं कहता कि चुप बैठो नाइंसाफी के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद न करो, प्रतिशोध न लो | लड़ाई हक कि होनी चाहिए हत्यायों कि नहीं | प्रतिशोध अपने हक का लो माँग स्वरुप नरसंहार के रूप में नहीं | लाशों के ढेर जंग में सिर्फ एक तरफ नहीं लगते | प्रतिशोध कि ज्वाला में निर्दोष का खून बहाना कहाँ कि इंसानियत है | इश्वर ने अनमोल तोहफे में हमें जीवन प्रदान कि है, उसमे में भी एक हिस्से कि जवानी, उस जवानी को सलाखों के पीछे बिताकर क्या हासिल होगा | जवानी परिवार, बीवी और बच्चों के साथ बिताने के लिए होती है, बुढ़ापे में परिवार के सहारे कि जरुरत होती है, फांसी के फंदे कि नहीं | दोषियों को सजा देना हमारा काम नहीं अपितु सरकार और प्रशासन उसके लिए गठित है, जिसको बनाने में हमारी भी भागेदारी है | परिवर्तन अटल सत्य है, हमारा हक और भविष्य हमसे कोई नहीं छीन सकता | समय और सरकार बदलती रहती है, कभी तो इन्साफ होगा | भगवान ने हमें अनमोल तोहफा स्वरुप बुद्धि प्रदान कि है उसका इस्तेमाल करो, उस बुद्धि में इतनी गोलियाँ हैं जितनी किसी भी देश के सैन्य भंडार में भी नहीं |
मैं न तो गाँधीवादी विचारधारा वाला हूँ और न ही सुभाष के बताये मार्ग का अनुसरण करता हूँ, थप्पड़ कि गूंज याद रखता हूँ और खून से ली गई आजादी मुझे नहीं चाहिए, मैं भगवान परशुराम भक्त, हिटलर की तरह हुँकार भरने वाला, कर्नल गद्दाफी की अर्थववस्था वाली सोंच रखने वाला, लाल बहादुर शास्त्री की तरह ईमानदार व्यक्ति हूँ और चाणक्य कि तरह संयम रखते हुए समय के इंतज़ार में रहता हूँ | खुद की राह पर चलता हूँ, एक ऐसी राह जिससे मझे मेरी मंजिल मिल जाती है | विषम से विषम परिश्थितियों ने भी मेरे होठ की लाली का रंग फीका न कर पाए, अपितु मझे कुछ नया सिखने को मिला |
परशुराम जी की प्रतिज्ञा और धृढ निश्चय ने मुझे कायल तो किया लेकिन उनके फरसे की चमक मुझे रास नहीं आई | हिटलर के सैन्य कमान की नीति तथा अंतिम साँस तक लड़ने की मर्दानगी ने मुझे प्रेरित तो किया लेकिन पुरे विश्व पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए लाखों की आहुति मुझे हिटलर से नफरत करने पर मजबूर करती है | कर्नल गद्दाफी ने लीबिया को विश्व पटल पर जिस तरह मजबूत बनाया, उसने जो अर्थव्यवस्था का ढांचा बनाया जो रुपरेखा तयार की वह काफी तारीफे काबिल थी लेकिन गदाफी ने लीबिया के जनता के खून पसीने कि कमाई दौलत से अपने अय्याशी कि जो सेज सजाई वह मुझे गदाफी से घृणा करने पर मजबूर करती है | आत्मा भी एक दिन मनुष्य का साथ छोडकर चली जाती है तो बईमानी से कमाया हुआ धन किसके लिए इकठा किया जाए | मेरे मुठ्ठी में जो रेखाएँ इश्वर ने गढ़ी हैं वह रास्ता बनकर कामयाबी कि शिखर पर मुझे एक दिन पहुंचा ही देंगी |
- संतोष कुमार (लेखक)