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मासूम जानवरों के चमड़े से निर्मित जुते आखिर अनिवार्य क्योँ ?

Monday 12 August 2013



हमारे संस्कृति को धूमिल करने की साजिस अंग्रेजों ने भरपूर रूप से रची और वह साजिस आज तक कायम है |

बचपन से ही हमें स्कूलों में चमड़े के जुते पहनने के लिए मजबूर कर दिया जाता है और यह सिलसिला आजीवन तक कायम रहता है | ब्राह्मण समाज के बच्चे आखिर क्योँ पहने ऐसे जुते ? सोंचने वाली बात है, सेना - पुलिस, स्कुल - कालेज, आफिस इत्यादि जगहों पर चर्म से निर्मित जुते आखिर अनिवार्य क्योँ ?

एक तरफ जानवरों को बचाने की मुहीम छेड़ी जाती है तो दुसरे तरफ इन जानवरों की हत्या का लाइसेंस का भी आवंटन होता है |

जब कपड़े और रबर से बने जुते विकल्प हैं तो क्योँ न करें इसका खुल कर बहिष्कार |

अगर इन जानवरों के साथ राष्ट्र की संस्कृति को बचाना और साथ ही देश के सबसे बड़े गद्दारों के मुंह पर लगाम लगाना है तो चमड़े से बने वस्तुओं का उपयोग करना हमें बंद करना होगा |

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संतोष कुमार

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