भगवान परशुराम भाग - १ Lord Parashurama Part 01
Wednesday, 1 August 2012
भगवान परशुराम - Lord Parashurama

भगवान परशुराम के जन्म से सम्बंधित :-प्राचीन काल में कन्नौज नामक राज्य पर क्षत्रिये वंश के राजा गाधि नाम के एक राजा राज्य किया करते थे | सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या उनकी पुत्री थी | ब्रह्मर्षि भृगु पुत्र महर्षि ऋषीक ने सत्यवती की सुंदरता पर मोहित होकर राजा गाधि के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा | चुकी महर्षि ब्राह्मण कुल से थे और गाधि क्षत्रिये वंश के, यह बात राजा भलीभांति जानते थे, उन्हें विवाह का प्रस्ताव मन ही मन स्वीकार न था | राजा ब्राह्मणों का आदर किया करते थे इसलिए भृगुनन्दन के प्रस्ताव का तिरस्कार करने का प्रश्न ही नहीं उठता था | राजा गाधि ने विवाह के प्रस्ताव को आदर पूर्वक टालने की मन ही मन योजना बनाई और महर्षि ऋषीक के समक्ष विवाह करने के लिए एक शर्त रखी | शर्त यह था की १००० स्वेत अश्वों जिनका एक कान का रंग काला हो, अगर महर्षि लेकर गाधि के समक्ष प्रस्तुत हो जाएँ तो वह विवाह के लिए तैयार हैं | प्रश्न जटिल था परन्तु असंभव नहीं | महर्षि ऋषीक ने शर्त को ध्यान में रखकर पवन देवता का आह्वाहन किया और अपनी समस्या बताई | पवन देवता ने उनकी यह समस्या को पलभर में दूर करते हुए शर्त के अनुसार १००० अश्वों को महर्षि को दान में दिया | महर्षि उन १००० अश्वों को को लेकर राजा के दरबार में उपस्थित हुए | शर्त पूर्ण हो चूका थी अब राजा के पास विवाह करने के अलावा कोई मार्ग नहीं शेष रह गया था | इस प्रकार भृगुनन्दन महर्षि ऋषीक और कन्नौज के राजा गाधि की पुत्री सत्यवती का विवाह संपन्न हुआ | भृगु ऋषि ने अपनी अत्यंत रूपवान पुत्रवधू से खुश होकर आशीर्वाद दिया तथा उसे वर माँगने के लिये कहा | सत्यवती ने अपने श्वसुर को प्रसन्न देखकर वर स्वरुप उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना जाहिर की । सत्यवती की मात्र भक्ति से प्रसन्न होकर महर्षि भृगु ने उसे एक और वर मांगने को कहा, तो इसबार सत्यवती ने स्वयं के लिए पुत्र की कमाना जाहिर की | भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हों तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करे और तुम अपनी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना और फिर इन चरुओं का सावधानी पूर्वक अलग - अलग सेवन कर लेना | इधर सत्यवती की माँ के मन में खोट आ चूका था उसने सोंचा कि महर्षि भृगु ने अपने पुत्रवधू को अवश्य ही उत्तम सन्तान होने का चरु दिया होगा, तो उसने अपने चरु को अपनी पुत्री सत्यवती के चरु से छल पूर्वक बदल दिया | इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया | महर्षि भृगु को अपने योगशक्ति से सत्यवती की माता द्वारा किये गए क्षल का ज्ञान हो चूका था | भृगु ऋषि ने अपनी पुत्रवधू से अपने योगशक्ति वाली बात कही कि तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है, मेरे वर का प्रभाव खत्म नहीं हो सकता, अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी | सत्यवती ने सत्यता को जानकार महर्षि भृगु से करुना पूर्वक विनती की कि आप मुझे आशीर्वाद दें कि मेरे पुत्र में ब्राह्मण का आचरण हो, और मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे | भृगु ऋषि ने विनती को स्वीकार करते हुए तथास्तु का वरदान दे दिया | समय के साथ सत्यवती कि माता के गर्भ से ऋषि विश्वामित्र और सत्यवती के गर्भ से महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ | भृगु ऋषि के पौत्र और महर्षि ऋचिक पुत्र जमदग्नि जिनकी गणना सप्तऋषियों में होती है के बड़े होने पर उनका विवाह राजा प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ | महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पाँच पुत्र हुए जिनके नाम थे - रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस और परशुराम | ब्रह्मर्षि वंशिये भगवान परशुराम आजीवन बाल ब्रह्मचारी रहे |
नोट: इतिहास से जुड़े इस क्षल का परिणाम आप देख चुके हैं | क्षल कपट से जुड़े कई इतिहास आपको ज्ञात भी होगा | इतिहास ने अपने पन्नों में क्षल कपट और दगे से जुडी कई कहानियों को समेटे रखा है और कालांतर में ऐसे कई पन्ने इतिहास से जुड़े |
- संतोष कुमार (लेखक)
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