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पुष्यमित्र शुंग – वैदिक धर्म के पुनरुत्थान के जनक “ शुंग राजवंश “ Pushyamitra Sunga (Sunga Dynasty)

Tuesday 14 August 2012

सम्राट पुष्यमित्र शुंग

पुष्यमित्र शुंग अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ के प्रधान सेनापति थे | मगध सम्राट व्रहद्रथ मौर्य की हत्या कर, पुष्यमित्र मगध सम्राट बने और शुंग राजवंश की स्थापना की | शुंग राजवंश के संस्थापक का जन्म ब्राह्मण, शिक्षक परिवार में हुआ था | इनके गोत्र के सम्बन्ध में थोडा मतभेद है, पतांजलि के मुताबिक भारद्वाज गोत्र और कालिदास द्वारा रचित “ मालविकाग्निमित्रम “ के अनुसार कश्यप गोत्र कहा जाता है | वैसे एक बात यहाँ मैं स्पष्ट करना चाहूँगा की ब्राह्मण कुल में जन्मे सम्राट पुष्यमित्र शुंग कर्म से क्षत्रिय ब्राह्मण रहे, जो यह सिद्ध करता है की वह एक अयाचक ब्राह्मण थे | “ साहसी मोहयालों का इतिहास “ नामक पुस्तक के लेखक पी. एन बाली ने पुष्यमित्र शुंग को अपने कथित पुस्तक में भूमिहार दर्शाया है | शुंग राजवंश की स्थापना पर विस्तारपूर्वक पढ़ें -

मगध साम्राज्य के नन्द वंशीय सम्राट धनानन्द के साथ नन्द वंश का सूर्याष्त तथा मगध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मौर्य साम्राज्य के उदय का श्रेय ब्राह्मण “ चाणक्य ” को जाता है | आचार्य चाणक्य ने अपने जीवित रहने तक विश्व की प्राचीनतम हिंदू धर्म की वैदिक पद्ति को निभाते हुए मगध की धरती को बौद्ध धर्म के प्रभाव से बचा कर रखा | किन्तु सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के पौत्र अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म को अपना कर लगभग २० वर्षों तक एक बौद्ध सम्राट के रूप में मगध पर शासन किया | अशोक ने अपने पूरे शासन तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में लगा दिया इसका प्रभाव मौर्य वंश के नौवें व अंतिम मगध सम्राट वृहद्रथ तक रहा |

जैसा की देखने को मिलता है, सम्राट चन्द्रगुप्त के शासन काल में मगध साम्राज्य की सीमा उत्तरी भारत तक ही थी | चंद्रगुप्त मौर्य अपने अंतिम दिनों में जैन धर्म को अपनाकर, राजपाट अपने पुत्र बिन्दुसार को सौंपकर तीर्थ के लिए रवाना हो गए थे | बिन्दुसार ने दक्षिण भारत के ऊचांई वाले क्षेत्रों पर विजय प्राप्त किया | २७३ ई.पू. में बिन्दुसार पुत्र सम्राट अशोक जब गद्दी पर बैठे तो उन्होंने अपने शासन का विस्तार करते हुए आज के समूचे भारत, केवल सुदूर दक्षिण के कुछ भूभाग को छोड़कर, नेपाल की घाटी, बलूचिस्ताजन और अफगानिस्तान तक मगध साम्राज्य का आधिपत्य कायम किया | परन्तु मगध सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध धर्मं अपनाने की वजह से, उससे लेकर अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ तक बौद्ध धर्म के अत्यधिक प्रचार एवं अहिंसा के प्रसार की वजह से वृहद्रथ के गद्दी पर बैठने तक मगध साम्राज्य सिमट कर रह गई | व्रहद्रथ का शासन आज का उत्तर भारत, पंजाब व अफगानिस्तान तक सिमित रह गया | उसके शासन काल में मगध सामराज्य पूरा बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो चुका था, आर्यावर्त की पावन धरती पर बौद्ध भिक्षुओ व बौद्ध मठों का केंद्र बन चूका था |

जहाँ सम्राट चंद्रगुप्त के शासन काल में ग्रीक शासक सिकंदर महान व उसका सेनापति सैल्युकस जैसे वीरों का भारत विजय का मंसूबा पूरा नहीं हो सका था, और अपना ह्रास करा वापस जा चुके थे, वहीं वृहद्रथ के शासन काल में यूनानियों (ग्रीक) ने सिन्धु नदी को पार करने का साहस दिखाया | ग्रीक शासक मिनिंदर जिसे बौद्ध ग्रन्थ में मिलिंद कहा गया है, ने वृहद्रथ मौर्य की अहिंसात्मक नीति को ध्यान में रखकर भारत विजय का सपना देखकर आक्रमण की योजना बनाई | मिनिंदर न बौद्ध धर्म गुरूओं को झाँसा देकर भारत में अपने यवन (यूनानी) सेना सहित प्रवेश किया | बौद्ध भिक्षु का वेश धरकर, मगध की सीमा से लगे बौद्ध मठों में अपने यवन सेना और हथियार सहित चोरी छुपे शरण ली | इसके भारत पर आक्रमण के मनसूबे में कई राष्ट्र द्रोही बौद्ध गुरूवों ने इसका साथ दिया था | यवन मिनिंदर ने भारत विजय के पश्चात् बौद्ध धर्म अपनाने की इक्छा इन राष्ट्र द्रोही बौद्ध धर्म गुरुवों के समक्ष रखी थी | राष्ट्र द्रोही बौद्ध धर्म गुरूवों के द्वारा एक विदेशी यूनान शासक एवं उसके सैनिको का बौद्ध मठों में आगमन से बौद्ध मठ राष्ट्रद्रोह का केंद्र बन चूका था | मगध साम्राज्य के देशभक्त सेनापति पुष्यमित्र शुंग को इस बात की भनक लग चुकी थी | पुष्यमित्र ने सम्राट वृहद्रथ से विदेशी यवनों के मठों में छिपे होने की बात का जिक्र कर मठों कि तलाशी की आज्ञा मांगी, जिसे बौद्ध धर्मी वृहद्रथ ने मना कर दिया | राष्ट्र भक्त पुष्यमित्र ने मगध की रक्षा को अपना राष्ट्र धर्म समझकर सम्राट वृहदरथ की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए मठों की तलाशी लेना शुरू कर दिया | मठों में बौद्ध वेश में छिपे सभी विदेशी यूनानी सैनिकों को पकड़ कर सेनापति पुष्यमित्र के आदेश से उनका कत्लेआम कर दिया गया | किन्तु ग्रीक शासक मिनिंदर किसी तरह वहाँ से बच निकला | इसके साथ सभी राष्ट द्रोही बौद्ध धर्म गुरुओं को भी कैद कर लिया गया | सम्राट वृहद्रथ अपने आदेश के उल्लंघन के साथ पूरे घटना क्रम को लेकर सेनापति पुष्यमित्र से नाराज था | यवनों और देशद्रोही बौद्धों को सजा देकर पुष्यमित्र जब मगध में प्रवेश हुए तो उस वक्त सम्राट वृहद्रथ सैनिक परेड की जाँच में लगा था | सम्राट और पुष्यमित्र शुंग के बीच परेड जाँच के वक़्त पूरे घटना चक्र, बौद्ध मठों को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया | सम्राट वृहद्रथ मौर्य ने अपने सेनापति पुष्यमित्र शुंग पर धोखे से हमला करना चाहा, परन्तु पुष्यमित्र ने सतर्कता बरते हुए खुद की जान बचाकर, सम्राट वृहद्रथ के हमले के जवाब में पलटवार करते हुए उसका वध कर दिया | देशभक्त मौर्य सैनिकों ने सेनापति पुष्यमित्र का साथ देकर पुष्यमित्र शुंग को मगध का सम्राट घोषित कर दिया | इस प्रकार १८४ . पू. में मौर्य साम्राज्य के नौवें अंतिम मौर्य शासक सम्राट वृहद्रथ मौर्य के साथ मगध की धरती से विशाल मौर्य सामराज्य का पतन हो गया |

पुष्यमित्र शुंग ने मगध सम्राट बनते ही, शुंग राजवंश की स्थापना की | सम्राट पुष्यमित्र ने एक सुगठित सेना का गठन करके दक्षिण भारत स्थित विदर्भ को जीतकर और यूनानियों को परास्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया | दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालन्धर और साकल (आज का सियालकोट) उसके साम्राज्य के अंतर्गत था | सम्राट पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिंदुकुश से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक तथा पूर्व में मगध से लेकर पश्‍चिम में पंजाब तक फ़ैला हुआ था | भगवान रामचंद्र की धरती अयोध्या से, सम्राट पुष्यमित्र शुंग संबंधी प्राप्त शिलालेख जिसमें उसे “ द्विरश्वमेधयाजी “ कहा गया है, जिससे प्रतीत होता है की उसने दो बार अश्वमेध यज्ञ किए थे | पतंजलि द्वारा रचित “ महाभाष्य “ में लिखा है “ इह पुष्यमित्रं याजयामः “, मुनि पतंजलि ने यहाँ दर्शाया है की वह पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित हैं एवं यज्ञ उनके द्वारा कराया गया है | कालिदास द्वारा रचित “ मालविकाग्निमित्र ” के अनुसार सम्राट पुष्यमित्र का यूनानियों के साथ युद्ध का पता चलता है और उसके पोते वसुमित्र ने यवन सैनिकों पर आक्रमण करके उनके सम्राट मिनिंदर सहित, उन्हें सिन्धु पार धकेल दिया था | शुंग सामराज्य के प्रथम व महान सम्राट पुष्यमित्र शुंग ने आर्यावर्त की धरती को बार बार ग्रीक शासकों के आक्रमण से छुटकारा दिलाया | इसके बाद आर्यावर्त के इतिहास में ग्रीक शासकों के आक्रमण का कोई भी जिक्र नहीं मिलता है | सम्राट पुष्यमित्र ने देश में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना कर मौर्य शासन काल में बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार के कारण ह्रास हुए वैदिक सभ्यता को बढ़ावा दिया | मौर्य शासन काल में जिन्होंने डर से बौद्ध धर्म को स्वीकार किया था वे पुन: वैदिक धर्म में लौट आए | मगध सम्राट पुष्यमित्र शुंग की राह पर चलते हुए उज्जैन के महान सम्राट विक्रमादित्य और गुप्त साम्राज्य के शासकों ने वैदिक धर्म के ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाया | शुंग साम्राज्य को वैदिक पुनर्जागरण का काल भी कहा जाता है | इस काल में संस्कृत भाषा का पुनरुत्थान हुआ था एवं मनुस्मृति के वर्तमान स्वरुप की रचना भी इसी युग में हुई थी | सम्राट पुष्यमित्र शुंग ने कुल ३६ वर्ष, (१८५ – १४९ ई. पू.) तक शासन किया | इनके पश्चात शुंग वंश में नौ शासक और हुए जिनके नाम थे - अग्निमित्र (१४९ – १४१ ई. पू.), वसुज्येष्ठ (१४१ – १३१ ई. पू.), वसुमित्र (१३१ – १२४ ई. पू. ), अन्ध्रक (१२४ – १२२ ई. पू.), पुलिन्दक (१२२ – ११९ ई. पू.), घोष शुंग, वज्रमित्र शुंग, भगभद्र शुंग और देवभूति शुंग (८३ – ७३ ई. पू.) | शुंग वंश के अन्तिम सम्राट देवभूति की हत्या करके उनके सचिव वसुदेव ने ७५ ई. पू. कण्व वंश की नींव डाली ।

- संतोष कुमार (लेखक)

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